Ultrasound information in Hindi – अल्ट्रासाउंड को लेकर कई मिथक लोगों के सामने आते रहते हैं मेडिकल साइंस भी इस पर निरंतर सर्च करती रहती है इसका कहीं गर्भस्थ शिशु पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता।
Ultrasound kyon kiya jaata hai ?
प्रेगनेंसी में होने वाली कई तरह के परीक्षणों में एक अल्ट्रासाउंड भी है शिशु के समस्त विकास और अनचाही जटिलताओं की पहचान के लिए अल्ट्रासाउंड किया जाता है कई लोगों की यह धारणा है कि गर्भस्थ शिशु को इससे नुकसान पहुंच सकता है हालांकि मेडिकल साइंस में भी इस पर कई शोध हो चुके हैं और अब तक इसका कोई नकारात्मक पहलू सामने नहीं आया है।
कब और कौन सा अल्ट्रासाउंड
भ्रूण और गर्भाशय शिशु के विकास की जांच के लिए अल्ट्रासाउंड प्रेगनेंसी के विभिन्न चरणों में किया जाता है।
Ultrasound kab kiya jaata hai ? Health
अल्ट्रासाउंड डेढ़ 2 महीने के बीच होता है इससे यूट्रस में विकसित भ्रूण जा ट्रिपलेट तो नहीं है। इसका पता लगाया जाता है और भ्रूण के आकार से उसकी उम्र और अनुमानित डिलीवरी का भी पता लगाया जाता है बच्चे में हार्टबीट 7 वें सप्ताह में आती है लेकिन गर्भवती को पेट दर्द हो ब्लीडिंग हो जा मिसकैरेज हो चुका हो तो डॉक्टर पांचवे सप्ताह में शिशु की हार्टबीट चेक करते हैं इस समय तक अगर गर्भावस्थ शिशु की हार्ट बीट ना सुनाई दे तो 10 से 15 दिन के बाद अल्ट्रासाउंड द्वारा करना पड़ सकता है। जे 7 वें सप्ताह में रिपीट किया जाता है इससे न्यूरल ट्यूब या स्पाइना बिफिडा एक्टोपिक प्रेगनेंसी की जांच भी हो जाती है एक्टोपिक प्रेगनेंसी गर्भपात कराना ही बेहतर उपाय है।
Ultrasound kaise hota hai ?
नेचल बॉन और न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्कैन अल्ट्रासाउंड 11-14 वे सप्ताह के बीच किया जाता है इसमें गर्भावस्था शिशु के सिर के पीछे और गर्दन के नीचे की तरफ का क्षेत्र में तरल के लेवल को मापा जाता है। अगर यह 3 मिली लेटर से अधिक हो तो जे डाउन सिंड्रोम हो सकता है इसलिए क्रोमोजोम चेक किए जाते हैं डाउन सिंड्रोम की आशंका होने पर अल्ट्रासाउंड से शिशु के नेजल बोन का आकार स्कैन किया जाता है के शिशु को कोई मानसिक विकार तो नहीं है इसकी पुष्टि होने पर प्रेगनेंसी के 11-14 सप्ताह में गर्भपात कराने की सलाह दी जाती है।
एनोमली स्कैन अल्ट्रासाउंड प्रेगनेंसी और शिशु के विकास की जांच के लिए अहम है यह अल्ट्रासाउंड 18 से 20 वें सप्ताह में किया जाता है। मेडिकल साइंस के अनुसार यह अल्ट्रासाउंड 24 सप्ताह के बाद होना चाहिए लेकिन भारत सरकार के नियमों के अनुसार 20 सप्ताह तक ही गर्भपात कराया जा सकता है एनोमली स्कैन अल्ट्रासाऊंड 2- डाइमेंशनल होता है जिससे शिशु के विभिन्न अंगों (हड्डियों, ब्रेन, रीड की हड्डी, चेहरा , किडनी और पेट) की जांच की जाती है अगर शिशु में विसंगति हो तो प्रसव के तुरंत बाद सर्जरी की जरूरत हो सकती है पर ऐसी स्थिति जो सर्जरी के बाद भी ठीक नहीं हो सकती तो डॉक्टर भी 20 वें सप्ताह तक का कानून गर्भपात कराने की सलाह दे सकते हैं।
ग्रोथ स्कैन और कलर डॉपलर स्कैन आखरी अल्ट्रासाउंड है जो 32 से 36 सप्ताह के बीच किया जाता है इससे गर्भस्थ शिशु के ब्रेन हॉट और अन्य अंगों में रक्त संचार की जांच की जाती है। साथ ही नॉर्मल डिलीवरी गर्भावस्था शिशु का पोजीशन , सिर का पोजीशन , एमनीओटिक फ्लूइड की मात्रा जांच की जाती है।
गर्भावस्था में शिशु की जटिलताओं की जांच
प्रेगनेंसी और डिलीवरी की अनुमति डेट से लेकर गर्भावस्थ शिशु की स्थिति और विकास के सभी पहलुओं की सटीक जानकारी अल्ट्रासाउंड से संभव है इससे रेडिएशन नहीं होता है गर्भवती को भी अल्ट्रासाउंड से कोई परेशानी नहीं होती है सिर्फ पहली तिमाही में अल्ट्रासाउंड के लिए फुल ब्लैडर करने और यूरिन रोके रखने में जरूर दिक्कत हो सकती है गर्भवती की केस स्टडी के हिसाब से कुछ परिस्थितियों में डॉक्टर सामान्य से अधिक बार अल्ट्रासाउंड करा सकते हैं जैसे गर्भवती की उम्र यदि 35 साल से अधिक हो यदि पहले गर्भपात हो चुका हो जल्दी लेट प्रेगनेंसी हो कोई समस्या हो जा बीच में ब्लीडिंग शुरू हो जाए पेन हो , वॉटर लॉस हो आदि।
Ultrasound kaise kaam karta hai ?
अल्ट्रासाउंड फोटोकापी की तरह होता है इसकी मदद से शरीर के अंदर होने वाली ग्रोथ को आसानी से देखा जा सकता है गर्भवती के पेट पर रेडियोएक्टिव जेल लगाया जाता है। जिसके माध्यम से शरीर के अंदरूनी हिस्सों को देखा जाता है। प्रशिक्षित डॉक्टर अल्ट्रासाउंड मैग्नेटिक प्रोब को पेट पर लगे जेल पर घुमाते हैं जो यूट्रस में शिशु के अंगों से टकराकर वापस आती है इस वेव्स की टकराहट से गर्भस्थ शिशु के विभिन्न अंगों की तस्वीर अल्ट्रासाउंड मशीन की स्क्रीन पर बन जाती है यही अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट होती है मैग्नेटिक प्रोब की हाई फ्रिकवेंसी साउंड वेव्स काफी कम तापमान की होती है इसीलिए इससे शिशु को नुकसान नहीं पहुंचता है। यूट्रस में मौजूद एमनीओटिक फ्लूइड वेव्स के तापमान को कम कर शिशु को नुकसान पहुंचाने से बचाता है।
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